Thursday, 7 September 2017

चंदेरी की मणिमाला का जौहर


27 जनवरी 1528 की रात्रि का अंतिम प्रहर समूची प्रकृति सोई पड़ी थी भोर होने मे एक पहर शेष था सूर्योदय में यकायक रणतूर्य बज उठे, सुरक्षा चौकियों से साबधान होने के संकेत मिलने लगे। दुर्ग के प्रहरियों ने रणतूर्य बजाकर सजग होने का संदेश दोहराया उत्तर दिशा से धूल का बवंडर चंदेरी की ओर बढ़ा चला आ रहा था । कुछ ही समय में धूल और लाली के मिश्रण ने चंदेरी नगर को ढक लिया था। महाराज मेदनीराय परिहार ने चारों ओर दृष्टि डाली तब पता चला कि चंदेरी नगर चारों ओर से बाबर की तोपों से लैस सैना द्वारा घेरा जा चुका हैै। तभी भागता हुआ प्रहरी आया। महाराज की जय हो.... तुर्क सैनिक एक पत्र देकर गया है। महाराज मेदनीराय ने पत्र पढ़ा....।
मुझे सख्त अफसोस है , कि हिंद के क्षत्रियों में जोश ही बहुत है पर होश की बहुत कमी है लेकिन तुमसे उम्मीद है , कि हिंद में और क्षत्रिय में अपने होशो हबाश की मिसाल कायम करके मेरी मातहती कबूल कर लोगे। काबुल से लेकर बेतवा तक के मालिक से दोस्ती करने पर तुम्हारा रुतवा बढ़ेगा न कि घटेगा बड़ों की दोस्ती हमेशा फायदेमंद रहती है। अब अपनी अक्ल से काम लेना अपनी औकात को भी नजर अंदाज ना करना। मैं भी तुम्हारी दोस्ती पर फक्र करुंगा .....।
शहंशाह बाबर

इस भावी युद्ध की सूचना राणासांगा को भेजी जा चुकी थी । परंतु बाबर का सौभाग्य कहिये , कि राणा सांगा इस युद्ध में भाग नहीं ले सके। बल्कि ठीक इसी समय एक प्रहरी तुर्क वेश में रांणासांगा का पत्र लेकर आया।
मेरे प्रिय मानस पुत्र मेदनीराय तुम्हारी चिंता में चित्तोड़ से चंदेरी के लिये चला अब एरच मे ठहरा हूं , मेरे जीवन का यह अंतिम ठहराव है।  अब कुछ ही देर में प्राण इस विकलांग शरीर से नाता तोड़ देगें। मेरे मन की इच्छा अतृप्त ही रह जायेगी। मैं चाहता था कि मेरे प्राण इस शरीर को युद्ध स्थल में ही छोड़ते , जिससे मुझे तृप्ति , तुम्हें सहयोग और आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा मिलती और बाबर का  हिसाब-किताब भी पाई-पाई चुकता हो जाता।
प्रिय मेदनीराय.....थोड़े से साधनों पर निर्भर पिंजड़े मे बंद पंक्षी की भांति तुम्हारी स्थिति आगई है। अब तुम्हे बल से नही बुद्धि से काम लेना है। हमारी भावुकता का ही परिणाम है कि यवन भारत में आ गये  यह भावुकता के संस्कार अपने रक्तगत दोष के परिणाम हैं। जिन पर तुम संयम और विवेक के अंकुश से विजय पा कर दूरदर्शी बुद्धीमत्ता पूर्ण निर्णय लोगे। इसी विश्वास के साथ तुम्हे युद्ध का होता बनाकर अब अपने जीवन की अंतिम आहुती युद्ध के मार्ग मे दे कर जा रहा हूं। कुछ और अधिक लिखता लेकिन अब और लिखने की सामर्थ नही है।
रांणासांगा.........।

तभी मेदनीराय ने संकल्प लिया हे धर्म पिता आपका मानस पुत्र रक्त की सरिता में स्नान कर तुर्कों के रक्त को अंजुली मे भर ही आपका तर्पण करेगा उसी से आपकी आत्मा तृप्त होगी। तभी बाबर के विशेष दूत शेखगुरेन तथा अरयाश पठान ने पत्र का जबाव मांगा.......।
मेदनीराय.....क्षत्रिय है.... भारत के इतिहास में क्षत्रिय भेंट नही लेते हैं...जितनी आग उसकी तोपों मे है ,इतनी गर्मी तो हर हिंद के क्षत्रिय के खून मे होती है.......।
महाराज मेदनीराय परिहार बाबर से युद्ध की घोषणा करते है....। बाहर शंखध्वनी तथा रणतूर्य बज उठते हैं राजपूतों की भुजायें फड़क उठती हैं।
प्रिये मंणिमाला अब हमे विदा दो हो सकता है ,यह हमारे जीवन का अंतिम मिलन और अंतिम विदा हो।
आर्यपुत्र.......कौन सी शक्ति है ? संसार में भारतीय नारी के सुहाग को मिटा सकती है ? हॉ इतना अवश्य माना जा सकता है कि हमारा आधा अंग युद्ध की ओर जा रहा है यदि कही वह रणचंडी का प्रिय हो गया तो अविलंम्व यह दूसरा अंग भी अग्निमार्ग से अपने आधे अंग से जा मिलेगा फिर आप कैसे कह सकते है कि यह हमारा अंतिम मिलन है।
 ( भारत मे किसी क्षत्रिय सेना का सामना पहली बार तोपों से हुआ था)

 भले ही राजपूत सेना का संख्या बल कम था पर पहले ही हमले मे तुर्क सेना के अग्रिम पक्ति के सैनिक काट डाले गये सेनापति मेहमूद गाजी के उकसाने पर भी तुर्क सेना पीछे हटने लगी। इस युद्ध में बुंदेलखंड के राव, सामंत,और लड़ाकू वीर क्षत्रिय युद्ध के आमंत्रण पर स्वेच्छा से मातृभूमि पर प्रांणोत्सर्ग करने आ पहुचे। सैना मे त्राहि त्राहि मच गई । खानवा और पानीपत का विजेता बाबर भी क्षत्रियों के विकट युद्ध से भयभीत हो गया। इस विषम परिस्थिति को आंक कर पीछे हट गया और खच्चर गाड़ियो पर लदी तोपों को आगे बढ़ा दिया गया। तथा घुड़सवार सैनिको को दांये तथा बांये से आक्रमण का हुक्म दिया(मानो भेड़िये सिंहों के घेरने की कोशिस कर रहे हैं ) युद्ध के नवीन संचालन से सिंहों की गति अवरूद्ध हो गई तोपों की मार से चीख-चिल्लाहट बढ़ी तो बढ़ती ही गई।

क्षत्रियों की आधी सेना तुर्कों की चौगनी सैना को मार कर वीरगति को प्राप्त हो चुकी थी। संध्या हो चुकी थी आज का युद्ध समाप्त हुआ। मेदनीराय अपने सेनापति नारायण के साथ अपनी सेना को एकत्र कर दुर्ग वापस लौटे।
रात्रि का प्रथम पहर था। रानी मणिमाला महाराज मेदनीराय के शरीर पर लगे घाव धोकर राज वैध की औषधि लगाकर गहन चिंतन में लेटे तभी हॉफते हुये सेनापति... नारायण ....महाराज की जय हो..... अहमद खॉ ने नगर का द्वार खोल दिया है नगर में बाबर की सैना घुस आई है। महाराज मेदनीराय झटके से उठे और पीछे मुड़कर बस इतना कहा विदा.... अंतिम विदा मंणि......और बाहर निकल आये। महारानी मणिमाला किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ी देखतीं रहीं। महाराज मेदनीराय ने नगर के मध्य पहुच कर शंखध्वनि दी।
हर हर महादेव का घोष दोहरा कर क्षत्रिय तुर्को पर टूट पड़े तिल तिल बढ़ना अब तुर्कों के लिये मौत का खुला खेल था। इस परिस्थिति को भांप कर बाबर ने चारों और से तोपों को चलाने का हुक्म दिया। कुछ ही क्षणों मे महाराज मेदनीराय घायल हो कर जमीन पर गिर पड़े। महाराज के विशेष सहयोगी नारायण ने परिस्थिति को भांप कर महाराज को कंधों पर उठा दुर्ग की ओर बढ़ गये।

इधर तुर्क सेना ने चंदेरी नगर में आग,लूट तथा हत्या का जो कार्य सुरू किया दूसरे सारे दिन चलता रहा। सूर्यास्त होने पर टीले पर झंडा गाढ़ दिया इधर रात्रि के तीसरे पहर प्रतिहार मेदनीराय ने ऑखें खोली
 महाराज मेदनीराय खड़े हुये हाँ अब मे अतिम युद्ध करने जा रहा हूं...
 हर हर महादेव करते हुये राजपूत दुर्ग के प्रमुख द्वार से बाहर आगये दुर्ग का द्वार खोल दिया गया जो आज भी खुला है। राजपूत तुर्कों पर घायल शेर की भांति टूट पड़े। दोनों ओर से अंतिम युद्ध लड़ा जाने लगा दुर्ग के मुख्य द्वार से रक्त की सरिता वहने लगी लाशों के ढेर लग गये। दिन के तीसरे पहर तक युद्ध चला और सभी महाराज मेदनीराय सहित तुर्कों को काटते काटते वीरगति को प्राप्त हो गये। बाबर भी चंदेरी दुर्ग मे घुसने मे रक्त की धारा लांघ ने मे कांप रहा था। यह देख कर बाबर के मुह से घबरा कर निकल गया...ओह..खूनी दरबाजा....।

उस दरबाजे को आज भी खूनी दरबाजे के नाम से जाना जाता है। अंतिम बचे प्रहरी ने महारानी मणिमाला को संदेश दिया....अन्नदाता वीरगति को प्राप्त हो गये। मणिमाला
चिर सुहागन मणिमाला के संकेत पर गिलैया ताल किनारे बनी विशाल चिता मे अग्नि प्रज्वलित करदी गई। महारानी मणिमाला के आदेश पर विशाल चिता मे अग्नि प्रज्वलित कर दी गई। कुछ ही क्षणों मे लपटे आकाश छूने लगीं। गिलैया ताल किनारे 1500 राजपूत रमणियों ने अपने जीवन को होम कर दिया। देखते ही देखते समूचां दुर्ग आग का गोला बन चुका था।  जैसे ही तुर्क सैनिक दुर्ग के भीतर जाने को हुये तो बचे हुये दो-चार सैनिकों ने मोर्चा सभाहला औऱ  बीरता पूर्बक लड़ते हुये वीरगती को प्राप्त हुए और अहमद खॉ बाबर के अगल-बगल खड़े हुये जलती चिता को देख रहे थे। जीवित जलती कोमलांगीयों को देख बाबर वेचैन हो गया। उसका कठोर ह्रदय भी पीडा से कराह उठा उसी समय चिता के भीतर से एक सनसनाता हुआ तीर आया और बाबर की पगड़ी मे लगा और वह जमीन पर गिर गई। तुर्कों मे फिर से आतंक छा गया तब बाबर के सभी सैनिक भाग कर चिता के नजदीक पहुचे और देखा कि मणिमाला अपने तरकश के तीर प्रयोग कर खाली धनुष कंधे पर डाल कर उस महाचिता को प्रणाम कर सुहाग के गीत गाती हुई चिता की ओर ऐसे बढ़ती गंई जैसे मुगल बेगम फूलों की सैर करने जाती हैं।
बाबर ठगा सा तलबार टेके हुये एकटक खड़ा देखता रहा और बाबर ने अपनी तलबार चिता मे डालकर श्रधांजली दी। बाबर अनमना सा अपने खेमे मे लौट आया चंदेेरी दुर्ग जीतकर बाबर ने विजय उत्सव नही मनाय। बाबर ने चंदेरी के भग्न ध्वस्त दुर्ग की सुवेदारी अहमद खॉ को सौप कर उसी समय दिल्ली के लिये कूच कर दिया। चंदेेरी दुर्ग की जलती चिता भभकती रही इस सुहाग की आग को लोगों ने 15 -15 कोस दूर से देखा। चंदेरी जौहर का पता चलते ही सुदूर अंचल की प्रजा भागी भागी आई और श्रद्धा सुमन अर्पित कर धन्य हुई।

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