******भाई बचित्र सिंह जी शहीद****
भाई बचित्र सिंह #पवार #राजपूत घराने से संबंध रखते थे ।
इनके बुजुर्गों ने 15 वीं सदी में सिख धर्म अपना लिया था । इस परिवार ने सिख धर्म के लिए बहुत कुर्बानियां की । ये सभी बहुत शूरवीर बहादुर थे और रणभूमि मे शत्रुओं के लिए जैसे काल थे ।
भाई बचित्र सिंघ जी के पिता राव (भाई) मनी सिंघ जी व दादा राव माई दास जी रियासत अलीपुर (नजदीक मुलतान) के राजा थे । उनका परिवार पंवार राजपूत घराने के महाराजा भोज व महाराजा उदय दीप का वंशज था जो मालवा क्षेत्र की रियासत धारा नगरी के राजा थे ।
इनकी वंशावली इस प्रकार है-
राजा सांतल
राजा मघ
राजा मुंज
राजा भोज
राजा जैसिंह
राजा सप्तमुकुट
राजा चतुर्मुकुट
राजा उदयदीप
राजा रणधावल
राजा उधार
राजा अम्ब चरन
राव लोइया
राव बींझा
राव जगन
राव माला
राव रादा
राव लखमण
राव जल्हा
राव हाफा
राव चाहड़
राव राऊ
राव मूलचंद
राव बल्लू राए
राव माईदास
राव मनी सिंह
कुंवर बचित्र सिंह ।
राव (भाई) बल्लू राए जी पवार इनके परदादा थे जो सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के प्रमुख सेनापति थे एवं 1634 ईस्वी मे मुगलों से लड़ते हुए शहीद हुए थे ।
राव (भाई) मनी सिंह जी पवार इनके पिता जी थे जो महान योद्धा व विद्वान थे और गुरु गोबिंद सिंह जी के दीवान (प्रधानमंत्री) थे। मुगलों ने बहुत यातनाएं देकर उनको 1734 ईस्वी मे शहीद किया । तब उनकी आयु 90 वर्ष थी।
कुंवर (भाई) बचित्र सिंह जी के 7 भाई और 2 पुत्र समय समय पर दुश्मनो से लड़ते हुए शहीद हुए थे ।
इनके परिवार के शहीद हुए सदस्यों की कुल संख्या 53 है ।
**तिनहु मझार एक है बचित्र सिंह सूरमा ।
बली बिलंद बाहु दंड शत्र ते गरूरमा ।
सु राजपूत जात ते मुछैल छैल जानिए ।
कृपान ढाल अंग संग जंग मे महानिए ।
@कवि संतोख सिंह- सूरज प्रकाश ग्रंथ
1 सितंबर 1700 को पहाड़ी राजाओं ने
राजा केसरी चंद जसवाल (हिमाचल प्रदेश) के नेतृत्व में किला लोहगढ का दरवाजा तोड़ने के लिए एक खूंखार हाथी को शराब पिलाकर भेजा ।
पहले गुरु जी ने दुनी चंद(जो माझा क्षेत्र का रहने वाला था) की तरफ इशारा करके कहा कि हाथी का मुकाबला हमारा हाथी (दुनी चंद बहुत डील डौल वाला था) करेगा लेकिन जब दुनी चंद भाग गया तो गुरु जी ने कहा कि अब हाथी का मुकाबला हमारा शेर (भाई बचित्र सिंह) करेगा
गुरु गोबिंद सिंह जी ने राव (भाई) मनी सिंह जी पवार (रियासत अलीपुर) ,उनके सुपुत्र भाई बचित्र सिंह जी भाई उदय सिंह जी प्रसिद्ध जनरल भाई आलम सिंह जी चौहान आदि सिख जरनैलों को भेजा ।
भाई बचित्र सिंह जी पवार को विशेष नागिन बरछा दिया गया था ।
रणभूमि मे पहुंच कर रणबांकुरे दुश्मन पर टूट पड़े ।
भाई बचित्र सिंह जी ने इतनी ज़ोर से बरछा मारा कि वो हाथी के माथे पर बांधे फौलाद के 7 तवों को चीर कर उसके माथे मे धंस गया ।
हाथी चिंघाड़ते हुए वापस पलटा और पहाड़ी फौज को लताड़ने लगा ।
इधर भाई उदय सिंह जी ने चीते की फुरती से राजा केसरी चंद का सिर काट लिया ।
खालसा फौज की जीत हुई ।
जब सिख फौज गुरु गोबिंद सिंह जी उनकी माता जी और महल(बीवीयां) के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ कर निकली तो एकदम से छुपे हुए पहाड़ी राजाओं ने हमला कर दिया ।
इसी दौरान गुरु गोबिंद सिंह जी के गुप्तचरों ने सूचना दी कि दक्षिण की तरफ से सरहिंद के वज़ीर खान की फौज भी आ रही है ।
इस तरह उत्तर की और से आ रही पहाड़ी राजाओं की फौज व दक्षिण की तरफ से आ रही सरहिंदी फौज के बीच
खालसा फौज जरनैल व गुरु गोबिंद सिंह जी घिर गए ।
वहां पर फैसला ये हुआ कि उत्तर की और से आ रही पहाड़ी फौज को रोकने कुंवर उदय सिंह (अलीपुर रियासत) खालसा फौज के साथ जाएंगे एवं दक्षिण की तरफ से आ रही सरहिंद फौज को रोकने कुंवर बचित्र सिंह (अलीपुर रियासत) खालसा फौज के साथ जाएंगे ।
इस तरह कुंवर बचित्र सिंह जी संवत् 1762 पौष
मास सुदी दूज को सरहिंद की फौज घोर युद्ध करते हुए बुरी तरह घायल हुए ।
घायल हुए कुंवर बचित्र सिंह जी को खालसा फौज के कुछ सरदार पास मे ही स्थित कोटला निहंग खान के जागीरदार निहंग खान की हवेली में ले गए जो गुरु घर के श्रद्धालू थे । उनकी बेटी मुमताज़ ने घायल कुंवर बचित्र सिंह जी की बहुत सेवा की । किसी ने रोपड़ की मुगल चौंकी मे सिखों के कोटला निहंग खान की हवेली में होने की सूचना दे दी तो चौंकी का कोतवाल जांच करने पहुंच गया ।पूरे घर की तलाशी मे कुछ नहीं मिला बस एक कमरा बच गया जिसमें कुंवर बचित्र सिंह जी व बीबी मुमताज़ थे । जागीरदार निहंग खान के कहने पर कि इसमें मेरी बेटी व दामाद हैं, कोतवाल ने तलाशी नहीं ली और चला गया ।
लेकिन कुंवर बचित्र सिंह जी के घाव बहुत गहरे थे सो 8 दिसंबर को रात 11-30 बजे शहादत
का जाम पी गए ।
2 दिन कुंवर बचित्र सिंह जी की सेवा करने के बाद जागीरदार की बेटी मुमताज़ ने उनको मन ही मन अपना पति मान लिया और सारी जिंदगी शादी नहीं की । कुंवर बचित्र सिंह जी की विधवा के रूप में जिंदगी गुज़ार दी।
इस सब के बारे मे कुंवर जी के परिवार के रावजी/भाट लिखते हैं -
""बचित्र सिंह बेटा मनी सिंह का पोता माइ दास का पड़पोता बल्लू राए का,चन्द्रबंसी,भारद्वाज गोत्र, पंवार, बंस बींझे का बींझावत, जल्हे का जलहाना, बल्लू का बालावत, साल सत्रह सौ बासठ पौष मास सुदी दूज वीरवार के दिहुं मलकपुर के मलहान रंघड़ां (मुस्लिम राजपूत) गैल युद्ध मे घायल हुआ ।गाम कोटला परगना निहंग खान के ग्रह रहा ,पौष मासे सुदी चौथ शनिवार के दिवस डेढ़ पहर रैन गई श्वास पूरे हुए ।निहंग खान की पत गुरु राखी।इसकी बेटी का सत रहा।""
(भाट बही मुलतानी सिंधी)
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